अब्र के दोहे
सम्यक ईश्वर की नजर, रचता रहे विधान।
सुख दुख दोनो ही दिये, माया जगत वितान।।
सुख दुख दोनो ही दिये, माया जगत वितान।।
निर्णय ईश्वर का हुआ, सदा बहुत ही नेक।
अज्ञानी समझे नहीं, समझा वही विवेक।।
अज्ञानी समझे नहीं, समझा वही विवेक।।
काव्य सुधा रस घोलती, समझ सृजन का मर्म ।
सम्बल हे माँ शारदे, अभिनन्दन कवि कर्म ।।
सम्बल हे माँ शारदे, अभिनन्दन कवि कर्म ।।
वैचारिकता शून्य जब, यत्र तत्र हो तंत्र।
सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।
सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।
गहरी काली रात में, सूझे नहीं उपाय ।
करें प्रात की वंदना, करता ईश सहाय ।।
करें प्रात की वंदना, करता ईश सहाय ।।
अहा अर्चना हम करें, नित्य प्रात के याम ।
भूधर का उत्तुंग शिखर , है भोले का धाम ।।
भूधर का उत्तुंग शिखर , है भोले का धाम ।।
वाणी संयम से मिले, सामाजिक सम्मान।
तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।
तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।
नदियाँ ममता बाँटती, ज्यों माता व्यवहार।
पालन पोषण ये करे, गाँव शहर संसार।।
पालन पोषण ये करे, गाँव शहर संसार।।
राजेश पाण्डेय”अब्र”