*औरत*
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औरत जानती है विस्तार को
देखती है संसार को
कभी नन्ही सी बिटिया बनकर
कभी किसी की दुल्हन बनकर
कभी अपनी ही कोख में
एक नयी दुनिया को लेकर!
औरत जानती है विस्तार को
देखती है संसार को
कभी नन्ही सी बिटिया बनकर
कभी किसी की दुल्हन बनकर
कभी अपनी ही कोख में
एक नयी दुनिया को लेकर!
नन्ही बिटिया से दादी-नानी का सफर,
तय करती है इस उम्मीद के साथ
बदलेगा समाज का नजरिया
शायद कभी गणतंत्र में…….?
तय करती है इस उम्मीद के साथ
बदलेगा समाज का नजरिया
शायद कभी गणतंत्र में…….?
अभिशप्त काल कोठरी में पड़ी,
अनगिनत सवालों में जकड़ी,
सारा जीवन अवरोधों और
वंचनाओं में कट जाता है
तपस्या और महानता कह
समाज गौरवान्वित होता है!
अनगिनत सवालों में जकड़ी,
सारा जीवन अवरोधों और
वंचनाओं में कट जाता है
तपस्या और महानता कह
समाज गौरवान्वित होता है!
औरत आशाभरी नजरों से,
समाज के बदलने का इंतजार करती है,
थककर आंखें मूंद लेती है,
फिर जन्म लेती है बेटी,
वही कहानी शुरू होती है,
मगर…….. इस बार……..
इंदिरा के स्वाभिमान सी,
कल्पना की उड़ान सी,
समाज के बदलने का इंतजार करती है,
थककर आंखें मूंद लेती है,
फिर जन्म लेती है बेटी,
वही कहानी शुरू होती है,
मगर…….. इस बार……..
इंदिरा के स्वाभिमान सी,
कल्पना की उड़ान सी,
गौरवान्वित कर राष्ट्र को
‘प्रेरणा’ बन जाती है
समूचे नारी जाति की
बदल देती है तकदीर,
आजाद हिंदुस्तान में
आजाद कर नारी को,
बना जाती है नयी तस्वीर!
‘प्रेरणा’ बन जाती है
समूचे नारी जाति की
बदल देती है तकदीर,
आजाद हिंदुस्तान में
आजाद कर नारी को,
बना जाती है नयी तस्वीर!
अब औरत जीती है विस्तार को
देखती है संसार को,
जिज्ञासा से नहीं,विश्वास भरी आंखों से…..
—-डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
अम्बिकापुर(छ. ग.)
देखती है संसार को,
जिज्ञासा से नहीं,विश्वास भरी आंखों से…..
—-डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
अम्बिकापुर(छ. ग.)
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