बच्चे अपने मन से जब जब
कुछ नया करते है।
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
जिस
राह पर
स्वयं चला था
वही राह दिखलाते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
ऐसा
हुआ तो
कोई अन्वेषण
सम्भव न हो पायेगा
किंतु घर के बड़े बुजुर्ग
प्रोत्साहित कहाँ कर पाते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
नव
मस्तिष्क का
रोपण पोषण संरक्षण
अक्सर ही नहीं कर पाते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
उन्हें
करने दो
स्वअनुरूप ही
प्रयोग भी होता है
स्कूली ज्ञान स्वरूप ही
व्यर्थ डांटना नहीं चाहिए
बच्चे भी डरते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
दिशा
उन्हे ही
तय करने दो
अनुभव का सागर ये जहाँ
पतवार भी उनके हाथ मे दे दो
देखो बस क्या करते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
हम बड़े भी तो बच्चे हैं, प्रकृति हमारी माँ ।
जो सीखाने को आतुर ,कृत्रिमता से परे होके।
पर हम सीख न पाये शीघ्र, नौनिहालों जैसे,
चूंकि हम हो चुके हैं ,ज्यादा अप्राकृतिक ।
कुछ नया करते है।
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
जिस
राह पर
स्वयं चला था
वही राह दिखलाते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
ऐसा
हुआ तो
कोई अन्वेषण
सम्भव न हो पायेगा
किंतु घर के बड़े बुजुर्ग
प्रोत्साहित कहाँ कर पाते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
नव
मस्तिष्क का
रोपण पोषण संरक्षण
अक्सर ही नहीं कर पाते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
उन्हें
करने दो
स्वअनुरूप ही
प्रयोग भी होता है
स्कूली ज्ञान स्वरूप ही
व्यर्थ डांटना नहीं चाहिए
बच्चे भी डरते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
दिशा
उन्हे ही
तय करने दो
अनुभव का सागर ये जहाँ
पतवार भी उनके हाथ मे दे दो
देखो बस क्या करते हैं
असफलता भय से,
बुजुर्ग उन्हे,
क्यों ?
टोकाटाँकी करते हैं।
हम बड़े भी तो बच्चे हैं, प्रकृति हमारी माँ ।
जो सीखाने को आतुर ,कृत्रिमता से परे होके।
पर हम सीख न पाये शीघ्र, नौनिहालों जैसे,
चूंकि हम हो चुके हैं ,ज्यादा अप्राकृतिक ।
✒ मनीभाई’नवरत्न’