Send your poems to 9340373299

खुदा ने अता की जिन्दगी

0 24

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
मुहब्बत के लिए

क्यूं कर बैठा तू दूसरों से नफरत
अपने अहम् के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
एक अदद इंसानियत के लिए

ऊंच – नीच के बवंडर में उलझ गया तू
ताउम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी
आशिक़ी के लिए

तू मुहब्बत का दुश्मन बन बैठा
ताउम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
इबादत के लिए

तू बहक गया धर्म के ठेकेदारों के कहने पर
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
किसी के आंसू पोंछने के लिए

CLICK & SUPPORT

तू अपनी ही मस्ती में डूबा रहा
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
इस गुलशन को आबाद करने के लिए

तू उजाड़ बैठा इस गुलशन को
अपने ऐशो – आराम के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
उपवन में फूल खिलाने के लिए

तू काँटों की सेज सजा बैठा
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
किसी जनाजे को कंधा देने के लिए

तू उसकी मौत का गुनाहगार बन बैठा
उम्र भर के लिए

खुदा ने अता की जिन्दगी तुझे
मुहब्बत के लिए

क्यूं कर बैठा तू दूसरों से नफरत
अपने अहम् के लिए

Leave A Reply

Your email address will not be published.