तुम्हारी यादों को आँसुओं से भिगो भिगो के मिटा रहा हूँ,
बचे हुए थे सबूत जितने समेटकर सब जला रहा हूँ।
कि एक तुम हो जिसे परिंदों के प्यास पे भी तरस नहीं है,
मैं कतरा कतरा बचा के उनके लिए समंदर बना रहा हूँ..
बचे हुए थे सबूत जितने समेटकर सब जला रहा हूँ।
कि एक तुम हो जिसे परिंदों के प्यास पे भी तरस नहीं है,
मैं कतरा कतरा बचा के उनके लिए समंदर बना रहा हूँ..
ग़ज़ब की उसने ये शर्त रक्खी या मैं जियूँगा या वो जियेगी,
कई बरस से मैं मर चुका हूँ यकीन उसको दिला रहा हूँ.
कई बरस से मैं मर चुका हूँ यकीन उसको दिला रहा हूँ.
नसीब लेती है कुछ न कुछ तो, कहाँ किसी को मिला है सबकुछ,
जो मेरे किस्मत में ही नहीं था, उसी का मातम मना रहा हूँ।
जो मेरे किस्मत में ही नहीं था, उसी का मातम मना रहा हूँ।
दगा किया था हमीं से तुमने, हमीं से रहते ख़फ़ा ख़फ़ा हो
जो क़र्ज़ मैंने लिया नहीं था, उसी की कीमत चुका रहा हूँ
जो क़र्ज़ मैंने लिया नहीं था, उसी की कीमत चुका रहा हूँ
*©चन्द्रभान पटेल ‘चंदन’*