दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं
कहने को तो हम कह जाएँ पर कहने से बचते हैं।
कहने को तो हम कह जाएँ पर कहने से बचते हैं।
दिल वालों की इस बस्ती में कौन किसी का अपना है
कहने को अपना कह जाएँ पर कहने से डरते हैं ।
कहने को अपना कह जाएँ पर कहने से डरते हैं ।
चाहत की बुनियाद पे हमने ख़्वाबों की तामीर रखी
सतरंगे अहसासों को हम बस अब अपना कहते हैं।
सतरंगे अहसासों को हम बस अब अपना कहते हैं।
चाहत के रिश्ते में हमने क्या खोया क्या पाया है
खुद को खोकर उसको पाया हम ये कहते रहते हैं।
खुद को खोकर उसको पाया हम ये कहते रहते हैं।
इश्क़ अधूरा अपना यारों अब कहने की बात नहीं
बस्ती बस्ती, सहरा सहरा मुस्काकर दुख सहते हैं।
बस्ती बस्ती, सहरा सहरा मुस्काकर दुख सहते हैं।
ज़ख्म सिये उल्फ़त में हमने जाने क्या क्या जतन किये
आंखों से अश्कों के मोती फिर भी झरते रहते हैं।
आंखों से अश्कों के मोती फिर भी झरते रहते हैं।
आवारा ये दिल का पंछी गगन तले उड़ता जाए
मिल जाएगा कोई नशेमन साथ हवा के बहते हैं।
मिल जाएगा कोई नशेमन साथ हवा के बहते हैं।
✒कलम से
राजेश पाण्डेय *अब्र*
अम्बिकापुर
राजेश पाण्डेय *अब्र*
अम्बिकापुर