कुण्डलिया छंद*
दीप पर्व
माटी का दीपक लिया, नई रुई की बाति।
तेल डाल दीपक जला,आज अमावस राति।
आज अमावस राति, हार तम सें क्यों माने।
अपनी दीपक शक्ति, आज प्राकृत भी जाने।
कहे लाल कविराय, राति तम की बहु काटी।
दीवाली पर आज, जला इक दीपक माटी।
दीवाली शुभ पर्व पर, करना मनुज प्रयास।
अँधियारे को भेद कर, फैलाना उजियास।
फैलाना उजियास, भरोसे पर क्या रहना।
परहित जलना सीख,यही दीपक का कहना।
कहे लाल कविराय, रीति अपनी मतवाली।
करते तम से होड़, भारती हर दीवाली।
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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