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सज्जन की जय हो गए और दगाबाजों को गाली है।
दीप से दीप जला ले भाई कहती यही दीवाली है ।
एक होकर दीपों ने, मिटाई रात की काली है ।
हाथ से हाथ मिला ले भाई कहती यही दिवाली है।
सजने लगा है घर हर जगह साफ दिखे हैं ।
सजने लगा है अंबर धरा फिर भी इनके रंग फीके है।
जब से सजने लगी घरवाली है ।
प्रीत से प्रीत जगा ले भाई कहती यही दिवाली है ।
बँटने लगा है मिठाई कंजूस ने दी दावत है ।
दीन भी पड़ोस के दीए से अपनी खुशी मनावत है।
बड़ा अजब सा प्रकृति ने ऊँच नीच ढाली है ।
हर मन से गम चुरा ले भाई कहती यही दीवाली है ।
दुकानों में भीड़ , चीजों में आए सस्ती है ।
महीनों की तप से किसानों में छाई मस्ती है ।
क्योंकि फसलों में आने वाली सोने की बाली है ।
झुमके नाच गा ले भाई कहती यही दिवाली है।
मनीभाई ‘नवरत्न’,
छत्तीसगढ़,
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