_*??दौर-ए-गजल??*_
ये हादसा हमारे साथ
चला करते हैं
शमा जलाते हुए हाथ
जला करते हैं
हमें ये डर लगा रहता है
कोई छींक न दे
तलाश-ए-रिज्क में जब घर से
चला करते हैं
बड़े लोगों ने पसीने की
कमाई लूटी
और हम हैं कि मुकद्दर से
गिला करते हैं
मैं उस चमन में इक गुलदान
लिए बैठा हूं
कि जिस चमन में अब अंगार
खिला करते हैं
दिखा रहे हैं जो संजीदा
सूरतें ‘राकेश’
वो लोग आ के मैकदे में
खुला करते हैं
_*??राकेश कुमार मिश्रा??*_