दोहे-द्रोपदी चीर प्रसंग
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पासे फेंके कपट के,
शकुनि रहा हर्षाय।
दाव द्रोपदी लग गई,
पाण्डव सब शर्माय।।
सभा मध्य में द्रोपदी,
करती करुण पुकार।
चीर दुशासन खींचता,
नहीं बचावन हार।।
भीष्म बली कुरुराज ने ,
साध लिया है मौन।
पांचों पति बोले नहीं,
बचा सके अब कौन?
गोविंद तुम करुणा करो,
अबला करी गुहार।
तुम बिन अब कोई नहीं,
लाज बचावन हार।।
नाम लेत ही प्रकट भे,
लीन्ह वस्त्र अवतार।
खींचत खींचत चीर को,
गया दुशासन हार।।
पुष्पा शर्मा”कुसुम”