ना शब्द है ना कोई बात,
जो मां के लिए लिख पाऊं,
उसके चरणों में मैं,
नित-नित शीश झुकाऊं,
जग जननी है मां,
हमारी भाग्य विधाता मां।
जो मां के लिए लिख पाऊं,
उसके चरणों में मैं,
नित-नित शीश झुकाऊं,
जग जननी है मां,
हमारी भाग्य विधाता मां।
गीली माटी की तरह ,
वो हमको गढ़ती है,
संस्कार की रौशनी ,
वो हममें भर्ती है,
कौन करेगा ये सब,
मां ही तो करती है।
वो हमको गढ़ती है,
संस्कार की रौशनी ,
वो हममें भर्ती है,
कौन करेगा ये सब,
मां ही तो करती है।
कढ़ी धूप में शीतल छाया,
हरदम रहता मां का साया,
उसकी गोद में आकर ,
जन्नत का सुख मैंने पाया,
इतनी ममता लुटाती है,
और कौन ,मां ही करती है।
हरदम रहता मां का साया,
उसकी गोद में आकर ,
जन्नत का सुख मैंने पाया,
इतनी ममता लुटाती है,
और कौन ,मां ही करती है।
ममता की बरसात है वो,
प्यार की वो प्यास है वो,
अपने बच्चों की खुशियों
की मुस्कान है वो,
मां तो मां है हमारे ,
जीवन की आधार है वो
प्यार की वो प्यास है वो,
अपने बच्चों की खुशियों
की मुस्कान है वो,
मां तो मां है हमारे ,
जीवन की आधार है वो
कितनी रातें कितनी सपनों,
का उसने त्याग किया,
तब जाकर उसने हमारे ,
सपनो को साकार किया,
उसका मान और सम्मान करें,
चाहे कितना बलिदान करें ,
कभी भी ये कर्ज उतार,
नहीं पायेंगे,
उसकी श्रद्धा से शीश हम ,
झुकाएगे,
मां तो सिर्फ मां है
नित -नित शीश झुकाएंगे।
का उसने त्याग किया,
तब जाकर उसने हमारे ,
सपनो को साकार किया,
उसका मान और सम्मान करें,
चाहे कितना बलिदान करें ,
कभी भी ये कर्ज उतार,
नहीं पायेंगे,
उसकी श्रद्धा से शीश हम ,
झुकाएगे,
मां तो सिर्फ मां है
नित -नित शीश झुकाएंगे।
पूनम दूबे अम्बिकापुर छत्तीसगढ़