फिर भी अब मैं आदमी नया हूं(fir bhi ab mai aadami naya hu)
पर वो पल मैं जीत गया।
बाकी जिंदगी तो चलता फिरता ढर्रा है।
दिल पर हुक उठे जाने कैसा डर?
बालुओं में जो बनते थे घर
यादों से अश्रु आ जाते आंखों पर।
सौंधी सी महक आता ।
सुख के क्षण ताजे होकर
मन अपना कही बहक जाता ।
अपनों के बीच में पराया हूं।
मेरे कानों में गूंजती वह बातें
फिर भी अब मैं आदमी नया हूं।
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