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फिर वही दर्द का सहर आया,
आज रस्ते में उसका घर आया..
आज रस्ते में उसका घर आया..
थी ये उम्मीद अब भी जी लूंगा,
तब अचानक ही वो नज़र आया..
तब अचानक ही वो नज़र आया..
इक सजा मैंने भी मुकर्रर की,
वो खड़ी थी के मैं गुज़र आया..
वो खड़ी थी के मैं गुज़र आया..
ज़िन्दगी ज़ायदाद सी लिख कर,
ज़िन्दगी उसके नाम कर आया..
ज़िन्दगी उसके नाम कर आया..
अब तमन्ना रही न जीने की,
इस कदर मैं वहां से मर आया..
इस कदर मैं वहां से मर आया..
सोच कर वो भी खुश हुई होगी,
कैसे ये ज़ख्म से उभर आया…
कैसे ये ज़ख्म से उभर आया…
*- चंदन*