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बीज मनुज का शैशव है

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आभासी परिदृश्यों से अब,
हुआ प्रभावित बचपन है।
नयी दृष्टि है,सोच नयी है,
विश्व हुआ अधुनातन है!!

परिवेशों से अर्जित करता,
सद्गुण-दुर्गुण मानव है।
युगों-युगों से तथ्य प्रमाणित,
बीज मनुज का शैशव है।।
शैशव में पोषित मूल्यों से ,
बनता भावी जीवन है..

बिना सुसंस्कृति,अंधी शिक्षा,
और पंगु है आविष्कार।
स्वस्थ व्यक्ति निर्माण-सूत्र है,
“हो सम्यक् आहार-विहार “।।
ध्यान रहे यह नित्य,ज्ञान क्या?
क्या केवल विज्ञापन है?

बड़ी भूमिका माँ होती है,
और पिता कर्त्तव्य बड़ा।
इन्हीं नींव पर ही होता है,
संततियोँ का भाग्य खड़ा।।
देश,काल,अनुकूल अपेक्षित,
आवश्यक परिवर्तन है।

परिवर्तन, आविष्कारों में,
लक्ष्य न भूलें जीवन का।
हितकारी पथ चलें,छोड़ भ्रम-
नूतन और पुरातन का।।
परिवर्तन में भी आवर्तित,
होता सत्य सनातन है ।

झूला,गोद नहीं हो सकता,
लोरी जैसा गीत नहीं,
दादा-दादी,नाना-नानी,
जैसा प्रेम पुनीत नहीं।
स्वर्ग स्वयं इनसे बन जाता,
धरती पर घर-आँगन है।

आभासी परिदृश्यों से अब,
हुआ प्रभावित बचपन है।
नयी दृष्टि है सोच नयी है,
विश्व हुआ अधुनातन है !!

रेखराम साहू


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