**बेताज बादशाह*******
आज देखा मैंने ऐसा हरा भरा साम्राज्य…
धन धान्य से भरपूर….
सोना उगलते खेत खलियान…
कल कल बहती नदियाँ…..
चारों ओर शांति,सुख, समृद्धि…
और वहीं देखा ऐसा बेताज बादशाह….
जो अपने हरएक प्रजाजन को..
परोस रहा था अपने हाथ से भोजन पानी..
अपने साम्राज्य के विस्तार में..
हर कोने की खबर है उसको..
कौन बीमार है, किसको कितनी देखभाल की जरूरत है..
धन धान्य से भरपूर….
सोना उगलते खेत खलियान…
कल कल बहती नदियाँ…..
चारों ओर शांति,सुख, समृद्धि…
और वहीं देखा ऐसा बेताज बादशाह….
जो अपने हरएक प्रजाजन को..
परोस रहा था अपने हाथ से भोजन पानी..
अपने साम्राज्य के विस्तार में..
हर कोने की खबर है उसको..
कौन बीमार है, किसको कितनी देखभाल की जरूरत है..
वो बादशाह है किसान..
जो बनाता है बादशाह को भी बादशाह..
उसी के दम पर चलती है बादशाहत..
किसान बिना मुकुट का बादशाह है..
जो जमीन बिछा आसमान ओढ़कर सोता है..
माटी के अख्खड़पन को वह अपने स्नेह से बनाता है उपजाऊ..
उसे नहीं चाहिए छप्पनभोग..
वह मोटा दाना खाकर ही रहता है..
धूप और बारिश उसको सुख देती है..
सच यही तो है भरण पोषण करने वाला.
सही मायनों में ..
इस विस्तृत साम्राज्य …
और जन मन का बादशाह..
जो बनाता है बादशाह को भी बादशाह..
उसी के दम पर चलती है बादशाहत..
किसान बिना मुकुट का बादशाह है..
जो जमीन बिछा आसमान ओढ़कर सोता है..
माटी के अख्खड़पन को वह अपने स्नेह से बनाता है उपजाऊ..
उसे नहीं चाहिए छप्पनभोग..
वह मोटा दाना खाकर ही रहता है..
धूप और बारिश उसको सुख देती है..
सच यही तो है भरण पोषण करने वाला.
सही मायनों में ..
इस विस्तृत साम्राज्य …
और जन मन का बादशाह..
स्वरचित
वन्दना शर्मा
अजमेर
वन्दना शर्मा
अजमेर