*ग़ज़ल*
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करूँ *तफ़सील* अगर तेरी तो हर लम्हा गुज़र जाए,
तुझे देखे अगर जी भर कोई तो यूँ ही मर जाए..
तुझे देखे अगर जी भर कोई तो यूँ ही मर जाए..
यहाँ हर शख्स मेरे दर्द की *तहसीन* करता है,
भरे महफ़िल से शाइर उठ के जाए तो किधर जाए..
भरे महफ़िल से शाइर उठ के जाए तो किधर जाए..
हर इक दिन काटना अब बन गया है मसअला मेरा,
तेरे पहलूँ में बैठूँ तो मेरा हर ज़ख्म भर जाए..
तेरे पहलूँ में बैठूँ तो मेरा हर ज़ख्म भर जाए..
यही सोचा था पागल ने बिछड़कर टूट जाऊँगा,
अभी ज़िंदा है मेरा हौसला उस तक ख़बर जाए..
अभी ज़िंदा है मेरा हौसला उस तक ख़बर जाए..
इरादा क़त्ल का हो और आँखों में मुहब्बत हो,
भला इस मौत से ‘चंदन’ कोई कैसे मुकर जाए..
भला इस मौत से ‘चंदन’ कोई कैसे मुकर जाए..
©चन्द्रभान पटेल ‘चंदन’
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*तफ़सील* – विस्तार वर्णन
*तहसीन* – वाह वाही, दाद देना, प्रशंसा
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क़ाफ़िया – अर
रदीफ़ – जाए
बह्र – बहर-ए-हजज़ मुसम्मन सालिम
अरकान – 1222 1222 1222 1222
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*तफ़सील* – विस्तार वर्णन
*तहसीन* – वाह वाही, दाद देना, प्रशंसा
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क़ाफ़िया – अर
रदीफ़ – जाए
बह्र – बहर-ए-हजज़ मुसम्मन सालिम
अरकान – 1222 1222 1222 1222