मदन मोहन शर्मा ‘सजल’ के दोहे
1- बाट निहारै थक गए,खंजन नैन चकोर।
मिलन आस टूटी नही, काया हुई कठोर।।
2-अधरों पर मुस्कान है, नयन धीर गंभीर।
बैठी शगुन मनावती,किसे बतावै पीर।।
3- विरह अगन के ज्वाल में, झुलसत गात अनंग।
शाम ढले जलती चिता, जलते दीप पतंग।।
4- छवि मधुरम हिय में बसी, मानो फूल सुवास।
मन चंचल भौंरा फिरै, करने को परिहास।।
5-मृगनयनी दर्पण लखै, कर सोलह श्रृंगार।
पिया मिलन की आस में, तड़फत बारम्बार।।
6- सजना है किस काम का,पिया बसै परदेश।
चंदा बादल ओट में,कुमुदिनी हृदय क्लेश।।
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