मुझे रखकर खयालों में ज़रा ये सोंचना हमदम,
चराग़-ए-रहगुज़र से मुश्किलें ज़्यादा हुई या कम…
कभी लगता था बिन तेरे मुक़म्मल दिन नहीं होगा,
अधूरी शाम तेरे नाम लिखकर जी रहे हैं हम…
मिले जो घाव किस्मत से, सुकूँ एक पल नहीं मिलता,
दिला दे कोई हमको भी ज़रा सा वक़्त का मरहम..
बड़ा मगरूर है पतझड़, बड़ा मायूस है सावन,
खुदाया फिर से लौटा दे, मुहब्बत का वही मौसम…
न हसरत है न चाहत है खुदा इतनी इबादत है,
रहे मासूम के चेहरे पे खुशियों की फिजा हरदम..
@चंदन