मेरे चांद का साया
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ए चांद दीखता है तुझमें,
मुझे मेरे चांद का साया है।
हुआ दीदार जो तेरा तो
ये चांद भी अब मुस्काया है।।
सदा सुहागन चाहत दिल में,
पति हित उपवास किया मैंने।
जीवन भर साजन संग पाऊं,
मन में एहसास किया मैंने।।
जितना जब मांगा है तुमसे,
उससे ज्यादा ही पाया है…
माही की है रची महावर,
मंगल सूत्र पहना है।
कुमकुम मांग सजाई है,
सोलह श्रंगारी गहना है।।
चौथ कहानी सुनी आज,
और करवा साथ सजाया है…
नहीं करो तुम लुक्का छिप्पी,
मुझको बिल्कुल नहीं भाती ये।
बैरन बदली को समझा दो,
जले पर नमक लगाती ये।।
हुई इंतेहा इंतजार की,
बीते नहीं वक्त बिताया है…
सुबह से लेकर अभी तलक,
मैं निर्जल और निराहार रही।
अंत समय तक करूं चतुर्थी,
खांडे की ही धार सही।।
चांद रहो तुम सदा साक्षी,
जब पिया ने व्रत खुलाया है…
शिवराज चौहान
नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)