*रोज़गार ही तो है*
शाब्दिक और प्रचलित अर्थ में,
केवल आजीविका का साधन
धनोपार्जन का माध्यम मात्र है-
“रोज़गार”।
किन्तु ब्रम्हांड के
विभिन्न मापदण्डों में,
तौला जाए तो
रोजी-रोटी और आजीविका से ऊपर
वृहत अर्थ लिए हुए,
मज़बूत और वज़नदार शब्द;
रोज़गार जरूरी है
सभी के लिए।
इन्सान हो या जानवर
पेड़-पौधे हों या पशु-पक्षी
नदी-पहाड़-मैदान
सभी के लिए,
ज़रूरी होता है रोज़गार ।
जीवंत ,महत्वपूर्ण और सार्थक
बने रहने की
अनिरुद्ध आवश्यकता है
रोज़गार।
जंगली जानवरों का ,
शिकार की तलाश में
दूर तलक जाना
रोज़गार ही तो है।
नन्ही चिड़ियों का
तिनका-तिनका जोड़कर
घोंसला बनाना ,
दाने लाकर अपने बच्चों को खिलाना
क्या उनके हिस्से का रोज़गार नहीं ?
नदी का निरंतर बहते रहना
पहाड़ों में उपजी औषधि,
मैदानों की फसलें
पेड़ पौधों का प्रकाश संश्लेषण भी
उनके हिस्से का रोज़गार ही तो है।
नवजात शिशु का स्तनपान
विद्यार्थियों का अध्ययन
गृहणियों का गृहकार्य
बुजुर्गों की सलाह,आशीर्वाद
सब उनके अपने-अपने स्तर का
रोज़गार ही है,
क्योंकि
मेरी नजऱ में रोज़गार साधन है
आदान और प्रदान का
निरन्तर सार्थक कर्म करते रहने का
चलते-चलते
और एक बात
प्रकृति में कहीं कोई आरक्षण नही
यह तो केवल इंसानों से इंसानों के बीच
क़ायम है
एक निकृष्ट रोज़गार की तरह…..
———
विजिया गुप्ता “समिधा”
दुर्ग- छत्तीसगढ़