रचयिता:-मनीभाई”नवरत्न”
रचनाकाल :- २२दिसम्बर २०१८,६ बजे
आज ना जाने , मन ने
शादी एल्बम देखने की लालसा की।
मैंने वक्त की दुहाई दी
पर वो माना नहीं।
एल्बम देखते ही लगा लिया
जिन्दगी की रिवर्स गियर
और रोका ऐसी जगह
जहां मुझे मिले
हंसते चिढ़ाते मेरे दोस्त।
ना जाने कहां खो गये थे
जीवन के आपाधापी में।
या मैंने ही
मुंह फेर लिया था उनसे
चूंकि अक्सर बदल जाते हैं लोग
जिनकी शादी हो जाती है।
बहुत दिनों बाद
लबों की टेढ़ी नाव बह रही है
यादों के समन्दर में।
अचानक आती है कहीं से आंधी
और छा जाती है गहरा सन्नाटा
यारों से बिछड़ जाने के ग़म से
लहरें टकराकर छलक जाती है
पलकों के किनारे से
नदी बह जाती है
सुर्ख गालों के मैदान में।
जहां हम व्यस्त हैं
अनेकों किरदार की भूमिका में।
जहां कोई रिटेक नहीं,
भावी सीन का पता नहीं
मैं अपने फिल्म का हीरो।
यादों के दलदल में और फंसता
इससे पहले कि
मेरी हीरोइन की आवाज आई
“काम पे नहीं जाना क्या?”
और मैं खड़ा हो गया
अगली शूटिंग में जाने को
नये किरदार निभाने को।।
✒️ मनीभाई’नवरत्न’
बसना, महासमुंद,छग