प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
सात सेदोका
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01)
कोमल फूल
सह जाते हैं सब
व्यक्तित्व अनुकूल
वरना कभी
मसल कर देखो
लहू निकालें शूल ।
02)
कंटक पथ
सफर पथरीला
साथी संग जीवन
कर लो साझा
होगा लक्ष्य आसान
मिलेगी सफलता ।
03)
मरु प्रदेश
मेघों का आगमन
है, जीवन संदेश
सूखे तरु का
तन मन हर्षित
अलौकिक ये वेश ।
04)
बस गईं वे —-
खयालों में जब से
भले वो साथ नहीं
पर हम तो
उनके साथ रहे
कभी अकेले नहीं ।
05)
यादों के साये
हवा के संग संग
मानो खुशबू हैं ये
भीतर आते
बंद कर लो चाहे
खिड़की दरवाजे ।
06)
क्रय-विक्रय
जीवन के सफर
कुछ नहीं हासिल
केवल व्यय
जिम्मेदारी के हाट
गिरवी पड़े ठाठ ।
07)
बड़े अजीब
खण्डहर निर्जीव
देखने आते लोग
चले जाते हैं
यही अकेलापन
है उसका नसीब ।
□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”