चलो गुलामी आज़ादी का,
मिलकर खेल बनाएं हम।
तुम व्यापारी अंग्रेज बनो,
और सेनानी बन जाएं हम।।
तुम हम पर कर लगाओ,
तो तड़प तड़प जाएं हम।
भूख प्यास बर्दाश्त ना हो,
और सेनानी बन जाएं हम।।
सत्ताधारी भ्रष्टाचारियों के,
जंजाल में फंस जाएं हम।
नासूर लाइलाज बनो तुम,
और सेनानी बन जाएं हम।।
बेरोज़गारी की आग में,
झुलस झुलस जाएं हम।
पेपर लीक तुम करवाओ,
और सेनानी बन जाएं हम।।
सब्जबाग दिखाओ हमको,
और बहक बहक जाएं हम।
विश्वासघात बर्दाश्त ना हो,
और सेनानी बन जाएं हम।।
रचनाकार – राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
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