होली पर कविता होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में लोग चन्दन और गुलाल से ही होली खेलते थे। समय के साथ इनमें भी बदलाव देखने को मिला है। कई लोगों द्वारा प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे त्वचा या आँखों पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े। टीवी9 भारतवर्ष द्वारा घर पर होली के रंग बनाने एवं रासायनिक रंगों से दूर रहने की सलाह दी गई है।

बह चली बसंती वात री।
बह चली बसंती वात री।
मह मह महक उठी सब वादी
खिल उठी चांदनी रात री।
सब रंग-रंग में रंग उठे
भर अंग अंग में रंग उठे
रग रग में रंग लिए सबने
उड़ उठा गगन में फाग री।
हो होकर हो-ली होली में
प्रिय प्यार लुटाते टोली में
मैं प्रेम रंग में रंग उठी
चल पड़ी प्रिय के साथ री।
ये लाल गुलाबी रंग हरे
कर दे जीवन को हरे-भरे
जीवन खुशियों से भर जाए
लेके हाथों में हाथ री।
आओ कुछ मीठा हो जाए
अपनेपन में हम खो जाए
बजे तान,तन- मन में तक- धिन
गा गाकर झूमे गात री।
हर दिन हो होली का उमंग
चढ़ जाए सारे प्रेम रंग
जल जाए जीवन की चिंता
हो जाए तन मन साफ री।
जीवन के रंग पर रंग चढ़े
सबके मन में सौहार्द बढ़े
प्रेम रंग चढ़ जाए इते कि
मिट जाए मन की घात री।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
अपनी जिंदगी की शानदार होली
होली तो बहाना है – मनीभाई
पिया से मिलने जाना है।
ओ….हो..हो….
पिया से मिलने जाना है।
होली तो…बहाना है।
सबसे हसीन… सबसे जुदा
उससे रिश्ता …बनाना है।
पिया से मिलने जाना है…
हाथों में तेरे….चुड़िया छन छन बजे।
पैरों में तेरे …पायलिया छम छम बजे।
रंग लगाके उसके गालों में…
और भी सजाना है।
होली तो…. बहाना है।
पिया से मिलने जाना है।
हरा गुलाबी…. लाल लगाऊंगा।
अपने हाथों से…. गुलाल लगाऊँगा
आंचल में उसके.. प्यार भीगाके
गले से उसे लगाना है।
होली तो … बहाना है।
पिया से मिलने जाना है।
मेरे प्यार में आज …. वो रंग जायेगी
मुझे गले लगाके …नहीं भूल पायेगी।
फागुन का महीना …प्रेम का महीना
प्रेम जताने में क्या शरमाना है?
होली तो….बहाना है।
पिया से मिलने जाना है।
होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार।
यारा मेरे दिलदार,तुझ संग मिला मुझे प्यार॥
ये हमारी मस्तानी टोली,मीठी बोली,सूरतिया भोली।
लोगों को मिलाये ऐसी होली,पानी ने रंग को जैसे घोली।
होली के रंग में डुबा संसार,होली के रंग है हजार।
होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥1॥
क्या जमीं के रंग?क्या आसमाँ के रंग?
मिल गया दोनों के रंग, आज होली के संग।
कोई ना बचा आज लाचार, होली के रंग है हजार।
होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥2॥
हम पिया के दीवाने,कौन -सा रंग दें ना जानें।
सारा तन रंग से गीला, फिर भी दिल ना मानें।
होली है रंग की बौछार, होली के रंग है हजार।
होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥3॥
मनीभाई पटेल नवरत्न
होली पर्व पर कविता
दिया संस्कृति ने हमें,अति उत्तम उपहार,
इन्द्रधनुष सपने सजे,रंगों का त्यौहार।1।
नव पलाश के फूल ज्यों,सुन्दर गोरे अंग,
ढ़ोल-मंजीरा थाप पर,थिरके बाल-अनंग।2।
मलयज को ले अंक में,उड़े अबीर-गुलाल,
पन्थ नवोढ़ा देखती,हिय में शूल मलाल।3।
कसक पिया के मिलन की,सजनी अति बेहाल,
सराबोर रंग से करे,मसले गोरे गाल।4।
लुक-छिप बॉहों में भरे,धरे होंठ पर होंठ,
ऑखों की मस्ती लगे,जैसे सूखी सोंठ।5।
बरजोरी करने लगे,गॉव गली के लोग,
कली चूम कहता भ्रमर,सुखदाई यह रोग।6।
झर-झर पत्ते झर रहे,पवन बहे इठलाय,
सुधि में बंशी नेह की,अंग-अंग इतराय।7।
तरुणाई जलने लगी,देखि काम के बाण,
बिरहन को नागिन डसे,प्रियतम देंगे त्राण।8।
पत्तों के झुरमुट छिपी,कोयल आग लगाय,
है निदान क्या प्रेम का,कोई मुझे बताय।9।
ऋद्धि-सिद्धि कारक बने,ऊॅच-नीच का नाश,
अंग-अंग फड़कन लगें,पल-पल नव उल्लास।10।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,

होली के रंग कविता- आरती सिंह
लाल रंग हो अधीर,सज्जित होकर अबीर,
निकले हैं आज कंचन काया को सजाने |
हरे-नील रंग चले, लेकर उमंग चले
आज मधुर बेला में सबको रिझाने |
चाहे कोई अमीर होवे या फिर फ़क़ीर
रंग सभी को लगे हैं एक सा रंगाने |
प्रेमी हो, मित्र चाहे, बैरी हो या हो बंधु
रंग सभी को लगे हैं एक कर मिलाने |
आज कोई मूढ़ नहीं, ना कोई सयाना है
एक जैसे चेहरे लगा आईना बताने |
प्रेम रंग डूबे सब, भूल गए ज़ात-पाँत
ईश्वर के पुत्र लगे ईश को मानाने |
कान्हा ने राधा संग, खेले होली के रंग
त्रिभुवन को भक्ति प्रेम रस में डुबाने |
आरती सिंह
रंगों की बहार होली कविता
रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली
अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली
होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली
रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली
प्रेयसी का श्रृंगार होली, प्रियतम का प्यार होली
अंग – अंग खुशबू से महकें , प्रेम का इजहार होली
सैयां की बैंयां का हार होली, अरमानों का आगाज़ होली
आशिकों का प्यार होली, मुहब्बत का इजहार होली
गुलाल से रोशन हो आशियाँ, दिलों में पलता प्यार होली
कभी पिया का इन्तजार होली, कहीं खिलती बहार होली
कहीं इश्क़ का इजहार होली, कहीं नफरत पर वार होली
खुदा की इबादत होली, खुदा पर एतबार होली
पालते जो दिलों में मुहब्बत , उन पर निसार होली
उम्मीदों का ताज होली, रिश्तों का रिवाज होली
कुदरत का करिश्मा होली, प्रकृति का प्यार होली
प्यार की जागीर होली, ख्वाहिशों का संसार होली
रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली
अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली
होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली
रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली
मौलिक रचना –
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
होली पर कविता – रचना चेतन
रंग, गुलाल, अबीर लिए, हर बार है होली आती
लेकिन सुनो इस बार की होली, होगी बड़ी निराली ।।
पिचकारी, गुब्बारे, रंग, उमंग और उत्साह
एक नई तरंग लिए, ये होली होगी कुछ खास ।।
रंग उड़े, गुलाल उड़े, पर रहना होगा सावधान
अपने संग अपनों की सेहत का, रखना होगा ध्यान ।।
कोरोना का खतरा टला नहीं है, अतः बनी रहे दो गज दूरी
गुजिया, नमकीन का स्वाद बढ़े, पर मास्क बहुत जरूरी ।।
सड़कों, चौबारों, मैदानों में हर साल, रंग बहुत उड़ाये
सबकी सुरक्षा के लिए इस बार, चलो होली घर में मनाएँ ।।
सेहत और खुशियों से भरी रहे, सब लोगों कि झोली
एक नया संदेश लिए, देखो आई है ये होली ।।
रचना चेतन
हमारी होली – आशीष बर्डे
रंगो में तु रंग मिलाकर
रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर
आग लगाओं क्रोध को
भस्म कर दो मोह को
छोड़ के बेरंग दुनिया को
आनंद में रंग दो तन मन को
रंगो में तु रंग मिलाकर
रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर
खुशीयो का रंग चडाकर
दुखो का चोला छोड़कर
उल्लास में स्वयं भिगकर
हर्षित कर दो जन जन को
रंगो में तु रंग मिलाकर
रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर
स्वभाव कर लो अमृतमयी
बैराग चोड़कर दूर कही
हर जीव्हा को मिष्ठान से भरकर
आशीष बर्डे (khumen)
होली – एक प्रेमी की नज़र से (आझाद अशरफ माद्रे)
शीर्षक : होली-एक प्रेमी की नज़र से
रंगों में रंग जब कभी मिलते है,
चेहरे फुलों की तरह खिलते है।
जान पहचान की ज़रूरत नही,
होली में दिल दिल से मिलते है।
होली में काश दोनों मिल जाए,
कितने अरमान दिल में पलते है।
रूठकर प्रेमी नही खेलते होली,
बाद में हाथों को अपने मलते है।
जाने अनजाने में वो मुझे रंग दे,
आज़ाद उनकी गली में चलते है।
आझाद अशरफ माद्रे
भटके हुए रंगों की होली – राकेश सक्सेना
आज होली जल रही है मानवता के ढेर में।
जनमानस भी भड़क रहा नासमझी के फेर में,
हरे लाल पीले की अनजानी सी दौड़ है।
देश के प्यारे रंगों में न जाने कैसी होड़ है।।
रंगों में ही भंग मिली है नशा सभी को हो रहा।
हंसी खुशी की होली में अपना अपनों को खो रहा,
नशे नशे के नशे में रंगों का खून हो रहा।
इसी नशे के नशे में भाईपना भी खो रहा।।
रंग, रंग का ही दुश्मन ना जाने कब हो गया।
सबका मालिक ऊपरवाला देख नादानी रो गया,
कैसे बेरंग महफिल में रंगीन होली मनाएंगे।
कैसे सब मिलबांट कर बुराई की होली जलाऐंगे।।
देश के प्यारे रंगों से अपील विनम्र मैं करता हूँ।
धरती के प्यारे रंगों को प्रणाम झुक झुक करता हूँ
अफवाहों, बहकावों से रंगों को ना बदनाम करो,
जिसने बनाई दुनियां रंगों की उसका तुम सम्मान करो।।
हरा, लाल, पीला, केसरिया रंगों की अपनी पहचान है।
इन्द्रधनुषी रंगों सा भारत देश महान है,
मुबारक होली, हैप्पी होली, रंगों का त्यौहार है।
अपनी होली सबकी होली, अपनों का प्यार है।।
(राकेश सक्सेना)
मैं आया खेलन फाग तिहार
मेरे दिलबरजानी मेरे यार
सांवरिया ….
मैं आया खेलन फाग तिहार ।
सांवरिया ….
आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
चम चम चमके रे ..तेरी लाली बिन्दिया।
मेरा चैन लेके रे …लुटे निन्दिया।
तुम्हीं मेरे …सरकार ।
सांवरिया ….
मैं आया खेलन फाग तिहार ।
सांवरिया….
आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
धक धक धड़के रे… दिल मेरा आज।
नैनन फड़के रे…. ना छुपे कोई राज़।
तू बन गई ….प्राणाधार।
सांवरिया …
मैं आया खेलन फाग तिहार ।
सांवरिया ….
आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
तन मन अंग में….बस गई रे तेरी सूरत।
तू ही जिन्दगी है और जरूरत।
चल निकल पड़े ….चांद पार।।
सांवरिया …।
मैं आया खेलन फाग तिहार ।
सांवरिया ….
आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
मनीभाई नवरत्न
होली होनी थी हुई – बाबू लाल शर्मा
कड़वी सच्चाई कहूँ, कर लेना स्वीकार।
फाग राग ढप चंग बिन, होली है बेकार।।
होली होनी थी हुई, कहँ पहले सी बात।
त्यौहारों की रीत को,लगा बहुत आघात।।
एक पूत होने लगे, बेटी मुश्किल एक।
देवर भौजी है नहीं, कित साली की टेक।।
साली भौजाई बिना, फीके लगते रंग।
देवर ढूँढे कब मिले, बदले सारे ढंग।।
बच्चों के चाचा नहीं, किससे माँगे रंग।
चाचा भी खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।
बुरा मानते है सभी, रंगत हँसी मजाक।
बूढ़ों की भी अब गई, पहले वाली धाक।।
पानी बिन सूनी हुई, पिचकारी की धार।
तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।
मोबाइल ने कर दिया, सारा बंटाढार।
कर एकल इंसान को,भुला दिया सब प्यार।।
आभासी रिश्ते बने, शीशपटल संसार।
असली रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।
हम तो पैर पसार कर, सोते चादर तान।
होली के अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।।
आप बताओ आपके, कैसे होली हाल।
सच में ही खुशियाँ मिली,कैसा रहा मलाल।।
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
फागुन के रंग
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
हर रंग कुछ कहता ही है,
हर रंग मे हंसी ठिठोली है।
जीवन रंग को महकाती आनंद उल्लास से,
जीवन महक उठता है एक-दूसरे के विश्वास से।
प्रकृति की हरियाली मधुमास की राग है,
नव कोपलों से लगता कोई लिया वैराग है।
हर गले शिकवे को भूला दो,
फैलाओं प्रेम रूपी झोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
आग से राग तक राग से वैराग्य तक,
चलता रहे यूँ ही परम्परा ये फ़ाग तक।
होलिका दहन की आस्था,
युगों-युगों से चली आ रही है।
आग मे चलना राग मे गाना,
प्रेम की गंगा जो बही है।
परम्परा ये अनूठी होती है,
कितनी हंसी ठिठोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
सपनों के रंग मे रंगा ये संसार सारा,
सतरंगी लगता इंद्रधनुष सबको है प्यारा।
बैगनी रंग शान महत्व और
राजसी प्रभाव का प्रतीक।
जामुनी रंग दृढ़ता नीला विस्तार
और गहराई का स्वरूप।
हरा रंग प्रकृति शीतलता,
स्फूर्ति और शुध्दता लाये।
पीला रंग प्रसन्नता आनंद से घर द्वार महकाये।
रंग नारंगी आध्यात्मिक सहन शक्ति सिखाये।
लाल रंग उत्साह साहस,
जीवन के खतरे से बचाये।
रंग सात ये जीवन मे रंग ही रंग घोली है।
हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
तो समझ लो फागुन की होली है।
आया होली का त्यौहार – रविबाला ठाकुर
आया होली का त्यौहार,
लेके रंग अबीर-गुलाल।
आओ मिलके खुशी मनाएँ,
चलो तिलक लगाएँ भाल।
जाति-पाँति और वर्ग-भेद का,
तोड़ो क्लेश भरा जंजाल।
मानव ने ही रचा-बसा है,
ये सभी घिनौना जाल।
ऊपर वाले ने तो ढाला,
देखो सबको एक समान।
इसी लिए तो हम सबका है,
खून एक सा गहरा लाल।
आओ मिलकर रंगों से हम,
रंग दें एक-दूजे का गाल।
एक-सूत्र में बँध जाएँ,
मानव-मानव एक समान।
तभी मिटेगा देश-राज से,
चीनी-पाकी सा शैतान।
और बनेगा जग में मेंरा,
प्यारा भारत देश महान।
आओ मिलकर सभी मनाएँ,
रंग भरा होली त्यौहार।
रविबाला ठाकुर”सुधा”
आप को पसंद आये ऐसी कुछ एनी कविताये :- स्वतंत्रता दिवस पर कविता
Leave a Reply