हो रहा कटु द्वेष का आयात है
अब न जीवन में रही वह बात है,
दिन नहीं उजला न उजली रात है।
क्या कहें सम्बन्ध के सम्बन्ध में,
यह परस्पर स्वार्थ का अनुपात है।
दीप बुझने हैं लगे जनतंत्र के,
देश में दुर्दम्य झंझावात है।
शांति का संदेश देने के लिए,
वह कराने लग गया उत्पात है।
जागरण है आज गहरी नींद में,
स्वप्न ने ऐसा किया आघात है।
काक-दल में बैठकर बगुला-भगत,
“हंस हूँ,”कहता फिरे,कुख्यात है।
है सरोवर स्नेह का सूखा सखे!
अब नहीं खिलता यहाँ जलजात है।
सत्य था आराध्य,थी सत्ता नहीं,
रत्न वह इतिहास का सुकरात है।
हो गया परिवार भी अब खंडहर,
भाईयों में घात है, प्रतिघात है।
प्रेम निर्वासित हृदय से हो गया ,
हो रहा कटु द्वेष का आयात है।
हाथ हिंसक हो हमेशा हारते,
हाथ की जयमाल तो प्रणिपात है।
रेखराम साहू