आहट पर कविता – विनोद सिल्ला

आहट पर कविता

Kavita Bahar || कविता बहार
Kavita Bahar || कविता बहार

सिंहासन खतरे में
हो ना हो
सिंह डरता है हर आहट से

आहट भी
प्रतीत होती है जलजला
प्रतीत होती है उसे खतरा
वह लगा देता है
ऐड़ी-चोटी का जोर
करता है हर संभव प्रयास
आहटों को रोकने का

अंदर से डरा हुआ
ताकतवर हो कर भी
डरता है बाहर की
हर आहट से

मान लेता है शत्रु
तमाम अहिंसक व शाकाहारी
निरिह जानवरों को

करता है ताउम्र मारकाट
मारता है निरिह जानवरों को
ताकि खतरे से बाहर
रहे उसका सिंहासन ।

विनोद सिल्ला©

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