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आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

इस कविता में वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को समाहित किया गया है |
आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

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आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

आज के समय परिवर्तन के
मिजाज़ को देखो
बदलते मिजाज़ के
इस चमन को देखो

किशोर जवानी की देहलीज़ पर
अपने आपको
वृद्ध महसूस कर रहे हैं

इंसान, आज इंसानियत को त्याग
अवसरवादिता के शिकार हो रहे हैं

मानसिकता में मानव की
अजब सा बदलाव आ गया है

संस्कृति, संस्कारों को छोड़
अवसरवादिता व आधुनिकता की अंधी दौड़
भा गया है

मर्यादा, तप, भावुकता, आत्मीयता
बीती बातें हो गयी हैं
आज का आदमी
असहज असहज सा नज़र आ रहा है

बाह्य आडम्बर ने
मानव को आज
भीतर से खोखला किया है
सहृदयता की जगह
वैमनस्यता ने ले ली है

मानव आज का
हास्यास्पद सा नज़र आ रहा है

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मानसिकता में आज के
मानव की
अजब सा मोड़ आ गया है
उपकार, कृतिघ्निता, आत्मीयता
इन सबमें अजीब सा
ठहराव आय गया है

अतिमहत्वाकांक्षा, चालाकी, चंचलता
ने पसार लिए हैं पाँव
आज का मानव
अपवित्र, भयानक, कुटिल,
क्रोधी व कपटी नज़र आ रहा है

पल – पल जिंदगी इनकी
नासूर हो रही है
ताकत और धन के
नशे में चूर
जिंदगी इनकी
बेनूर हो रही है

चारित्रिक पतन ने
इनका जीवन
और भी भयावह
कर दिया है
अस्तित्व धरा पर
इनका
अंधकारपूर्ण हो गया है

गिरता है कोई
तो हंस उठते हैं सब
उठता है कोई जब
अर्श से आसमान की ओर
तो सबका
दिल जल उठता है
किस्सा ए इंसानियत का
इस धरा से
नामो निशाँ
मिट गया है

आज आदमी हर
एक दूसरे से
कुछ इस तरह
कट गया है

जिस तरह
नदी के दो पाट
जिनके मिलने की संभावना
न्यून हो गई है

आदमी आदमी के काबिल न रहा
आज जिंदगी
बेमानी हो गई है

आज जिंदगी
बेमानी हो गई है

आज जिंदगी
बेमानी हो गई है

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