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अगर करो तुम वादा मुझसे

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अगर करो तुम वादा मुझसे

मरुधर में भी फूल खिलादूँ
पर्वत को भी धूल बनादूँ
अगर करो तुम वादा मुझसे
प्राण ! मेरे संग चलने का ।

हँस-हँसकर शूल चुनूँ पथ के
पलकों की नाजुक उँगली से
बणीठणी-सा चित्र उकेरूं
मग पर करुणा कजली से

डगर-डगर की प्यास बुझादूँ
राहों की भी आह मिटादूँ
अगर करो तुम वादा मुझसे
जलद ! मेरे संग गलने का ।

पीप मचलते छालों का मैं
दर्द बसालूँ अंतर्मन में
मोती-माणक तारे जड़ दूँ
सपनों के जर्जर दामन में

हर आँसू की उम्र घटादूँ
मधुर हास को शिखर चढ़ादूँ
अगर करो तुम वादा मुझसे
कमल ! मेरे संग खिलने का ।

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अटकी है जो नाव भँवर में
दूँ तट का आलिंगन उसको
खेते तार साँस का टूटे
तो भी कुछ शोक नहीं मुझको

हर भटके को राह दिखा दूँ
रोते मन को जरा हँसा दूँ
अगर करो तुम वादा मुझसे
मीत ! मेरे संग ढलने का ।

नूर नोंच लूँ आगे बढ़कर
अँधियारी काली रातों का
रहन पड़ा जो पूनम कंगन
छुड़ा बढ़ाऊँ सुख हाथों का

हर रजनी की मांग सजादूँ
सुबहों को भी सुधा पिलादूँ
अगर करो तुम वादा मुझसे
दीप ! मेरे संग जलने का ।

फैल रहा जो धुँआ नगर में
पसर गया जो दर्द सफर में
छेद रहा जो कांटा मन को
बैठ गया जो तीर जिगर में

पथ से उनको जरा हटादूँ
दर्दों का भी नाम मिटादूँ
अगर करो तुम वादा मुझसे
शलभ ! मेरे संग जलने का ।

अशोक दीप
जयपुर

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