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अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है

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Kavita Bahar || कविता बहार
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अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है
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सजे हैं बाजार जगमगाता शहर है,
दीपोत्सव आया आनंद लहर है,
अंधेरे से आज दीपों की ठनी है,
अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है।

बड़े बच्चे सबके खुशी की घड़ी है
हर द्वार वंदनवार फूलों की लड़ी है।
स्वागत में माँ लक्ष्मी के सब खड़े हैं,
फूट रहे हैं पटाखे जली फुलझड़ी है।

खुशी ही खुशी सबके चेहरे पे छाई,
गले मिलते देखो खिलाते मिठाई,
रिश्ते निभाने को प्रेम बढ़ाने को,
दीवाली उत्सव सर्वोत्तम कड़ी है।

चौदह बरस के वनवास से राम,
लौटे इसी दिन थे वो अपने धाम,
मनाया नगरवासियों ने था आनंद,
वही रीत युग-युग से चल पड़ी है।



गीता द्विवेदी

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