अंग – अंग में रंग चढ़ाया – सन्तोष कुमार प्रजापति

विधा – गीत (सरसी छन्द)
प्यारा यह मधुमास सुहावन ,
काम तनय सब जान I
अंग – अंग में रंग चढ़ाया ,
मदन तीर ले तान Il तुम्हें बताऊँ कैसे सजना ,
मन की अपने पीर I
होली का मनभावन उत्सव ,
तुम बिन धरे न धीर ll
आ जाओ फिर होली खेलें ,
भाँग पिलाओ छान I
अंग – अंग में … …. … मुझे पड़ोसी ऐसे ताकें ,
जैसे सोना चोर l
मला गुलाल बहुत गालों में ,
बदन रंग में बोर Il
तन मेरा ये दहक रहा है ,
मन भी बहका मान l
अंग – अंग में … …. ….. मुझे चैन मत पड़ता साजन ,
होली करे कमाल I
बुरा न मानो कह – कह सबने ,
चोली करदी लाल ll
आँखें मेरी हुईं शराबी ,
बदल गई मम तान l
अंग – अंग में … …. …. हरा , लाल , नीला औ पीला ,
धानी उड़े गुलाल I
तन मेरे मकरन्द टपकता ,
भ्रमर देख तो हाल Il
यौवन की मदहोशी छायी ,
चढ़ा प्रेम परवान l
अंग – अंग में … …. …. तुम मुझको मैं तुम्हें रंग दूँ ,
फिर गायेंगे फाग l
राधा तेरी राह निहारे ,
माधव आओ भाग Il
तुम बिन मटकी मेरी अटकी ,
करो फोड़ सम्मान I
अंग – अंग में … …. … स्वरचित
सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
कबरई जिला – महोबा ( उ.प्र. )