Join Our Community

Send Your Poems

Whatsapp Business 9340373299

अंतरतम पीड़ा जागी

0 164

अंतरतम पीड़ा जागी

खोया स्वत्व दिवा ने अपना
अंतरतम पीड़ा जागी
घूँघट हैं छुपाये तब तब ही
धडकन में व्रीडा जागी ।

CLICK & SUPPORT


अधर कपोल अबीर भरे से
सस्मित हास् लुटाती सी
सतरंगी सी चुनर ओढ़े
द्वन्द विरोध मिटाती सी
थाम हाथ  साजन के कर में
सकुचाती अलबेली सी
सिहर ठिठक जब पॉव बढ़ा
तो ठाड़ी रही नवेली सी


आई मन मे छायी तन में
सकुच ठिठक सब बंध गए
हुआ गगन स्वर्णिम आरक्तिक
खग कलरव निर्द्वन्द गए
चपल चमक चपला सी मन मे
मेरे मन को रोक लिया
कैसे करूँ अभिसार सखी मैं
उसने मुझको टोक दिया ।


सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर

Leave A Reply

Your email address will not be published.