अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल को मनाया जाता है। कभी-कभी इसे ऑल फ़ूल्स डे के नाम से भी जाना जाता हैं। 1 अप्रैल आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है परन्तु इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक परिहास और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं। इस दिन मित्रों, परिजनों, शिक्षकों, पड़ोसियों, सहकर्मियों आदि के साथ अनेक प्रकार की नटखट हरकतें और अन्य व्यावहारिक परिहास किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य होता है। बेवकूफ और अनाड़ी लोगों को शर्मिंदा करना।

1april fool day

अप्रैल फूल मनाना चाहिए

कभी-कभार हंसने हंसाने का,
लोगों को बहाना चाहिए।
हां!अपनों से मूर्ख बनके,
अप्रैल फूल मनाना चाहिए।

यूं कब तक जिन्दगी को,
गंभीरता से जीते रहेंगे।
इसे तो बेफिकरे बनके ,
बिंदास बिताना चाहिए।
हां अपनों से मूर्ख बनके,
अप्रैल फूल मनाना चाहिए।

हम सीखते हैं धोखा खाने से,
जो सीखा न पाती ढेरों पोथी।
जिन्दगी में सही-गलत का सबब
धोखा खाके आजमाना चाहिए।
हां अपनों से मूर्ख बनके,
अप्रैल फूल मनाना चाहिए।

छोड़ते नहीं जो पुरानी बातें
बन जाते हैं वे हंसी के पात्र।
“मूर्ख दिवस”का इतिहास बताये
समय के साथ ढल जाना चाहिए।

हां अपनों से मूर्ख बनके,
अप्रैल फूल मनाना चाहिए।

(रचयिता:-मनी भाई पटेल नवरत्न )

प्रस्तुत कविता मुबारक हो मुर्ख दिवस आशीष कुमार मोहनिया के द्वारा रचित है । इस कविता के माध्यम से 1 अप्रैल मूर्खता दिवस की मुबारकबाद दे रहे हैं और अपने मित्र के साथ हुई कॉमिक घटना का वर्णन कर रहे हैं।

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मुबारक हो मूर्ख दिवस

सोचा एक दिन मन ने मेरे
कर ठिठोली जरा ले हँस।
थोड़ी सी करके खुराफात
हम भी मना ले मूर्ख दिवस।

योजना बना ली चुपके से
इंतज़ार था दिवस का बस।
दाना डालूँगा मित्र को मैं
पंछी जायेगा जाल में फँस।

मना बॉस को फोन कराया
होने वाला है तेरा उत्कर्ष।
खुशखबरी सुन ले मुझसे तू
है तेरा कल तरक्की दिवस।

पहुँचा सुबह ही मित्र के घर
देने को बधाई उसे बरबस।
हाथ थमाकर उपहार बोला
मुबारक हो तरक्क़ी दिवस।

आवभगत कर मुझे बिठाया
फिर लाया कोई ठंडा रस।
बोला वो गर्मी दूर भगा ले
ना रख तू कोई कशमकश।

तैर रहा था बर्फ का टुकड़ा
गर्मी ने किया पीने को विवश।
काली मिर्च का घोल था वो
पिया समझ कर गन्ने का रस।

जलती जिह्वा ने शोर मचाया
सामने से मित्र ने दिया हँस।
बोला कर ली थोड़ी सी चुगली
मुबारक हो यार मूर्ख दिवस।

बहुत हुआ हँसी मजाक तेरा
चल यार तू अब दिल से हँस।
तरक्की की खबर सुनकर तेरी
लाया हूँ जो ले खोलकर हँस।

हँसते-हँसते खोला उपहार
मुक्‍के पड़े उसको कस-कस।
मुँह पकड़ कर बैठा फिर नीचे
हुआ नहीं जरा भी टस से मस।

तरक्की दिवस तो था बहाना
बाबू हँस सके तो जोरों से हँस।
दिल की अंतरिम गहराइयों से
मुबारक हो तुम्हें भी मूर्ख दिवस।

- आशीष कुमार मोहनिया, कैमूर, बिहार

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