औरत कमजोर है!

औरत कमजोर है!

तुम कहते हो, औरत कमजोर है!
जरा देख लो ,शहर की दीवारें
वहाँ किस मर्ज पे, अधिक जोर है।
रँगी दीवारों में,बस एक ही शोर है
शुक्रवार को मिलें,हकीम बैद्य से
ताकत लेने जो मर्द,कमजोर हैं।
तुम कहते हो….
अभी से तुम घबरा गए देख कर
मर्दाना कमजोरियों से रँगी दीवारें
आगे देखो अभी तो बस भोर है।
तुम कहते हो…
औरत जीवन का सृजन करती है
महीनों असह्य प्रसव वेदना सहती है
जीवन समर्पण का नहीं कोई छोर है।
तुम कहते हो..औरत कमजोर है!
बेटा-बेटी दोनों का गुणसूत्र होता है
मर्द खुद कमजोरी, उसपे धो लेता है
बांझपन भी औरत के ही सिरमौर है
तुम कहते हो…..
कभी हाड़ा तो कभी झांसी की रानी
कभी राधा,सीता,कभी मीरा दीवानी
औरत का ही जलवा, तो हर ओर है
तुम कहते हो….
कभी पद्मावती तो कभी कर्णावती
दुश्मनों को जलाती,खुद जल जाती
दुर्गा,काली,तो रूप छटा मन मोर है।
तुम कहते हो….
©पंकज प्रियम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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