अवि के दोहे


घड़ी

घड़ी घड़ी का फेर है,
    मन में राखो धीर।
राजा रंक बन जात है,
   बदल जात तकदीर।।

प्रेम

प्रेम न सौदा मानिये,
    आतम  सुने पुकार।
हरि मिलत हैं प्रीत भजे
मति समझो व्यापार।।

दान

देवन तो करतार है,
  मत कर रे अभिमान।
दान करत ही धन बढ़ी,
   व्यरथ पदारथ जान।।

व्यवहार

कटुता कभू न राखिये,
   मीठा राखो व्यवहार
इक दिन सबे जाना है,
    भवसागर के पार।।

अविनाश तिवारी


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