अविनाश तिवारी की रचना

कविता संग्रह
कविता संग्रह

मां मंदिर की आरती

मां मंदिर की आरती,मस्जिद की अजान है।
मां वेदों की मूल ऋचाएं, बाइबिल और कुरान है।

मां है मरियम मेरी जैसी,
मां में दिखे खुदाई है।
मां में नूर ईश्वर का
रब ही मां में समाई है।
मां आंगन की तुलसी जैसी
सुन्दर इक पुरवाई है।
मां त्याग की मूरत जैसी
मां ही पन्ना धाई है।।
मां ही आदि शक्ति भवानी
सृष्टि की श्रोत है
मां ग्रन्थों की मूल आत्मा
गीता की श्लोक है।
मां नदिया का निर्मल पानी
पर्वत की ऊंचाई है
मां में बसे हैं काशी गंगा,
मन की ये गहराई है।
मां ही मेरा धर्म है समझो
मां ही चारों धाम है।
मां चन्दा की शीतल चाँदनी
ईश्वर का वरदान है।
अविनाश तिवारी

गांधी फिर कभी आओगे

नमन बापू नमन गांधी
गांधी तुम फिर आओगे
जनमानस के पटल पर
छुद्र स्वार्थ हटाओगे।


जाति पाती ही ध्येय बना
सत्ता के गलियारों का
सत्य अहिंसा नारे बन गए
जनता को भरमाने का
बढ़ती पशुता नग्नता सी
कैसी वैचारिक विषमता है
मानवता शर्मिंदा होती
ये कैसी समरसता है।
चरखा पर हम सूत कातते
स्वालम्बन कभी सिखाओगे
भटकी देश की जनता सारी
गांधी फिर कभी आओगे


खादी बन गया सपना देखो
चरखा गरीब ही कात रहा
नारा स्वदेशी का देते देते
विदेशी को अपना रहा।
सत्याग्रह को अस्त्र बनाकर
स्वराज फिर लाओगे
पूछ रही है जनता सारी
गांधी फिर कब आओगे
बापू तुम फिर आओगे।।



अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा

मैं भारत का लोकतंत्र

मैं भारत का लोकतंत्र,
जन गण मुझमें समाया है ।
संसद मेरा मंदिर,
जनता ने मुझे बनाया है ।।


मैं गरीब की रोजी रोटी,
भूखों का निवाला हूँ ।
मैं जनों का स्वाभिमान भी
भारत का रखवाला हूँ ।।

मैं जन हूँ जनता के खातिर,
जनता द्वारा पोषित हूँ ।
बन अधिकार जनता का मैं,
पौधा जन से रोपित हूँ ? ।।


ऐसे जनतंत्र को दाग लगाने,
भेड़चाल तुम न चलना ।
मत बिकना कभी नोटों से,
प्रजातन्त्र अमर रखना ।।


कहना दिल्ली सिंहासन से,
ये जनता का दरबार है।
भूल से भी भरम न रखना,
ये तेरी सरकार है ।।


अमर हमारा लोकतंत्र है,
खुशियां रोज मनाते हैं ।
ईद दिवाली वैसाखी क्रिसमस,
मिलकर हम मनाते हैं ।।

अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा 495668
मो-8224043737

एक पाती प्रेम की

एक पाती प्रेम की
तेरे नाम लिख रहा हूँ,
तेरी आँखों की सुरमई पे
जीवन तेरे नाम कर रहा हूँ।

तेरा आँचल जब लहराये
क्यों मन मेरा हर्षाये
तेरे अधरों की है लाली
तेरी लटकती कान की बाली
तेरे पग पग को कमल
लिख रहा हूँ
इक पाती प्रेम की
तेरे नाम कर रहा हूँ।

यूँ लट से गिरती बुँदे
मोती सा जो दमके
तेरी खनखनाती बोली
तेरी हंसी तेरी ठिठोली
बस यही इकरार कर रहा हूँ
प्रिये प्रेम की प्रथम पाती
तेरे नाम कर रहा हूँ।
कैसे भेजूं किससे भेजूं
दिल का दर्द कैसे सहेजूं
दिन को तेरे लिये रात कह रहा हूँ
प्रिये ये पाती तेरे नाम
कर रहा हूँ।
तेरा खिड़की पे आना वो पर्दा उठाना
उठाकर गिराना
गजब ढा जाता है।
नयनों के बाण से घायल बनाना
रिझाकर हमसे आँखे चुराना
क्यों तुमको भाता है।
तेरी जुल्फों के छांव की
आस ढूंढ़ रहा हूँ।
प्रिये प्रीत की प्रथम पाती
तेरे नाम कर रहा हूँ।।

अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा

हमसफ़र पर कविता

अख्श मेरा वो ऐसे मिटाने लगे,
न मिले थे कभी ऐसे दिखाने लगे

कल तलक बसते थे धड़कन में जिनके,
आज पर्दे में मुँह को छुपाने लगे।
अख्श मेरा………

आंख झुकती रही कुछ कह न सकी,
राज दिल मे ही खुद दबाने लगे।

न पूछे थे हम क्यूँ प्यार तूने किया
अश्क आंखों से वो यूं बहाने लगे।
अख्श……….

पास आये थे यूं बनेंगे हमसफ़र
आज अपने से ही दूर जाने लगे।
वफ़ा हमने  कि जो बेवफा न कहा
दर्द दिल का था उसे बहलाने लगे।
अख्श…………..


अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा

रोम रोम में बसते प्रभु तुम

शून्यता से पूर्णता
अनन्त तुम्हारा विस्तार है।
सृष्टि के कण कण में विराजित
तेरा ही साम्राज्य है।

आख्यान तुम व्याख्यान  हो
अपरिमेय संपूरित  ज्ञान हो
हे अनादि अनदीश्वर तुम्ही
सांख्य विषय कला और विज्ञान हो।

सूत्र हो सूत्र धार हो
नियति तुम करतार हो
हो परिभाषित संचिता
अपरिभाषित तुम भरतार हो।

जग नियंत्रक परिपालक
संहारक प्राणवान हो
उदित जीव जीवात्मा
के बस तुम्ही आधार हो।

हूँ अबोध शिशु तेरा
मर्म न तेरा जान सका
आदि तुम अंत तुम
परम् सत्य न पहचान सका।

तुम नसों में बहते रुधिर
स्वांस और उच्छ्वास हो
रोम रोम में बसते प्रभु तुम
प्रतिपल मेरे पास हो
कण कण में निवास हो।

अविनाश तिवारी

कोई तो है-ईश्वरीय सत्ता पर कविता

बीज से पौधा फिर बीज
क्रम है निरन्तर
नियंता भी है
सुनो कोई तो है।

सुख और दुख अंतर्निहित
मन के भाव द्वन्दित
इन्हें सुलझाता है कौन
सुनो कोई तो है

नदिया से गागर गागर में सागर
बूंदों का बनना
फिर नीचे गिरना
क्रम अनवरत
कोई तो है

जीवन और मृत्यु
चिर निरन्तर अनुक्रम
पाप और मोक्ष
कर्मो का निर्वहन
संतृप्त की खोज
आत्म अन्वेषण
सुनो कोई तो है

आत्मा परमात्मा
परम् सुख जीवात्मा
मोह का बन्धन
प्रेम अनुबन्धन
बंधे है सब नियति की डोर
कोई तो है
तो क्यो नकारते
तुम अदृश्य सत्ता
क्यों झुठलाते
निर्विकार रूप
सत्य असत्य की कसौटी
परमेश्वर का सत
हां यही है यही है
अनादि अनीश्वर का रूप
हां कोई तो है
कोई तो है।

@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा


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