कविता प्रकाशित कराएँ

बदलते परिवेश पर कविता

kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah

बदल रहा है आज जमाना डॉ एनके सेठी द्वारा रचित बदलते परिवेश पर कविता है। आज समय के साथ साथ रिश्तों की परिभाषा बदल चुकी है।

बदल रहा है आज जमाना

भौतिकता के नए दौर में
बदल गया सब ताना बाना।
रिश्तों की मर्यादा टूटी
बदल रहा है आज जमाना।।

चौपालें सूनी हैं सारी
संस्कारों का मान घटा है।
रिश्तों में अब पड़ी दरारें
मानव अपने तक सिमटा है।।
लाज शर्म सब छूट गई अब
बदल गया सब रहना खाना।
रिश्तों की मर्यादा टूटी
बदल रहा है आज जमाना।।

हॉट डॉग पिज्जा बर्गर ही
करे पसंद युवा पीढ़ी अब।
छोड़ पियूष गरल अपनाया
दूध दही घी भूले हैं सब।।
भूल गए अब चूल्हा चौका
होटल ढाबों पर है खाना।
रिश्तों की मर्यादा टूटी
बदल रहा है आज जमाना।।

छोटे छोटे वस्त्र पहनकर
करे दिखावा नंगे तन का।
साड़ी को भी भूल गए अब
करे प्रदर्शन खुल्लेपन का।।
एकाकी जीवन है सबका
काम करे सब ही मनमाना।
रिश्तों की मर्यादा टूटी
बदल रहा है आज जमाना।।

अच्छाई को छोड़ सभीअब
नकल बुराई की करते है।
धन दौलत के पीछे दौड़े
अनासक्ति का दम भरते हैं।।
निर्बल का धन लूट लूटकर
ध्येय है केवल धन कमाना।
रिश्तों की मर्यादा टूटी
बदल रहा है आज जमाना।।

माँं को कहने लगे मॉम सब
डैड पिता को कर डाला।
बाकी सब अंकल आंटी हैं
संबंधों में भी घोटाला।।
स्वारथ के रिश्ते नाते ही
अब जीवन का है पैमाना।
रिश्तों की मर्यादा टूटी
बदल रहा है आज जमाना।।

डॉ एनके सेठी

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *