बाल दिवस पर तीन कविता
1 बाल कविता – “बच्चे”
शीर्षा छंद
222 222 2
बच्चों की आई बारी |
है मस्ती की तैयारी ||
आई छुट्टी गर्मी की |
ठंडी – ठंडी कुल्फी की ||
भोले -भाले प्यारे हैं |
मीठे खारे तारे हैं ||
कच्ची माटी के भेले |
मिट्टी की रोटी बेलें ||
छक्का मारे राहों में |
टेटू छापे गालों में ||
नाना -नानी आये हैं |
ढेरों खाजे लाये हैं ||
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कवियित्री – सुकमोती चौहान “रुचि”
2 भारत के वीर बच्चे हम
भारत के वीर बच्चे हम
वचन के पक्के,मन के सच्चे हम
काट डालें अत्याचार का सर
तलवार की वो धार हम।
जला दें बुराइयों को
आग की ओ लपटें हैं हम।
उखाड़ दें अन्याय की जड़ें
तूफान की ओ शबाब हम।
बहा ले चलें गिरि विशाल
नदी की हैं ओ सैलाब हम।
मिलकर जिधर चलें हम
बाधाओं से न डरें हम
टकरायें हमसे किसमें है दम
ओ मजबूत फौलाद हैं हम।
वतन के रखवाले हम
आजादी के मतवाले हम
मातृभूमि के दुलारे हम
वीरों ने अपने रक्त से सींचा
उस चमन के महकते सुमन हम
भारत के वीर बच्चे हम।
कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया, महासमुंद, छ. ग.
3 शिशु
कितनी अनुपम है यह छवि
मस्ती में चूर अलबेली चाल
कितनी प्यारी कितनी नाजुक
नन्हें नरम हाथों की छुअन।
क्या , है ऐसा कोमल? दुनिया का कोई स्पर्श?
वह चपलता वह भोलापन
प्यारी सूरत दर्पण सा मन
पल में रोना पल में हँसना
इतना सुखद इतना सुंदर
क्या है ऐसा आकर्षक? दुनिया का कोई सौंदर्य?
मन को आनंदित करे
तुतली बातों की मिठास
कितना मोहक ,कितना अनमोल
अधरों की निश्छल मुस्कान
क्या है ऐसा पावन? दुनिया में हँसी किसी की?
पहले पग की सुगबुगाहट से
थुबुक – थाबक चलना वह
पग नुपूर की छन – छन में
लहर सा नाचना वह
बाल सुलभ वह चेष्टाएँ
फीकी लगे परियों की अदाएँ
क्या है इतना सुखदायी ? दुनिया का कोई वैभव विलास?
कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया, महासमुंद, छ. ग.