(मुज़तस मुसम्मन मखबून)
कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं।
सहन ये भूख न होती उदर दबे दबे से हैं।
गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं।
हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं।
मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले से हैं।
नया न कुछ जो सुनें हम कथन सुने सुने से हैं।
‘नमन’ तुझे है सियासत सपन बुझे बुझे से हैं।
तिनसुकिया