बरस मेघ खुशहाली आए
बरस मेघ खुशहाली आए

बरसे जब बरसात रुहानी,
धरा बने यह सरस सुहानी।
दादुर, चातक, मोर, पपीहे,
फसल खेत हरियाली गाए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
धरती तपती नदियाँ सूखी,
सरवर,ताल पोखरी रूखी।
वन्य जीव,पंछी हैं व्याकुल,
तुम बिन कैसे थाल सजाए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
कृषक ताकता पशु धन हारे,
भूख तुम्हे अब भूख पुकारे,
घर भी गिरवी, कर्जा बाकी,
अब ये खेत नहीं बिक जाए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
बिटिया की करनी है शादी,
मृत्यु भोज हित बैठी दादी।
घर के खर्च खेत के हर्जे,
भूखा भू सुत ,फाँसी खाए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
कुएँ बीत कर बोर रीत अब,
भूल पर्व पर रीत गीत सब।
सुत के ब्याह बात कब कोई,
गुरबत घर लक्ष्मी कब आए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
राज रूठता, और राम भी,
जल,वर्षा बिन रुके काम भी।
गौ,किसान,दुर्दिन वश जीवन,
बरसे तो भाग्य बदल जाए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
सागर में जल नित बढ़ता है,
भूमि नीर प्रतिदिन घटता है।
सम वर्षा का सूत्र बनाले ,
सब की मिट बदहाली जाए,
बरस मेघ, खुशहाली आए।।
कहीं बाढ़ से नदी उफनती,
कहीं धरा बिन पानी तपती।
कहीं डूबते जल मे धन जन,
बूंद- बूंद जग को भरमाए,
बरस मेघ ,खुशहाली आए।।
हम भी निज कर्तव्य निभाएं,
तुम भी आओ, हम भी आएं,
मिलजुल कर हम पेड़़ लगाएं,
नीर संतुलन तब हो जाए,
बरस मेघ , खुशहाली आए।।
पानी सद उपयोग करे हम,
जलस्रोतो का मान करे तो।
धरा,प्रकृति,जल,तरु संरक्षण,
सारे साज– सँवर तब जाए,
बरस, मेघ खुशहाली आए।।
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बाबू लाल शर्मा,बौहरा