Send your poems to 9340373299

बसंत पंचमी पर गीत – सुशी सक्सेना

0 47

मेरे मन का बसंत

बसंत ऋतु का, यहां हर कोई दिवाना है।
क्या करें कि ये मौसम ही बड़ा सुहाना है।
हर जुबां पर होती है, बसंत ऋतु की कहानी।
सुबह भी खिली खिली, शाम भी लगती दिवानी।

चिड़ियों ने चहक कर, सबको बता दिया।
बसंत ऋतु के आगमन का पता सुना दिया।
पतझड़ बीत गया, बन गया बसंती बादल।
पीली चुनरिया ओढ़ कर, झूम उठा ये दिल।

बसंत एक दूत है, देता प्रेम का संदेश।
मेरे मन में बसंत का जब से हुआ प्रवेश।
मन का उपवन खिल उठा, छा गई बहार।
बसंत ऋतु में नया सा लगने लगा संसार।

नये फूल खिले, नई ख्वाहिशें मचली।
मन के उपवन में मंडराने लगी तितली।
प्रीत का अब तो मुझको, हो गया अहसास।
सुंगधित हवा कहती है, कोई है मन के पास।

सुशी सक्सेना

Leave A Reply

Your email address will not be published.