बेटा-बेटी में भेद क्यों पर कविता
सागर होते हैं बेटे, तो गंगा होती है बेटियां
चांद होते हैं बेटे, तो चांदनी होती हैं बेटियां
जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
कमल होते बेटे,तो गुलाब होती हैं बेटियां
पर्वत होते बेटे, तो चट्टान होती हैं बेटियां
जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
पेड़ होते हैं बेटे,तो धरा होती हैं बेटियां
मेघ होते हैं बेटे, तो धरा होती हैं बेटियां
जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
फूल होते हैं बेटे, तो खुशबू होती हैं बेटियां
बर्फ होते हैं बेटे, तो ओस की बूंद होती है बेटियां
जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
जग संचालक बेटे,तो जन्मदात्री होती हैं बेटियां
कुल के रक्षक बेटे, तो कुल की देवी होती बेटियां।।
जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
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