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बेटी पर घनाक्षरी व कुण्डलियाँ -लक्ष्मीकान्त ‘रुद्रायुष’

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बेटी पर घनाक्षरी


सुख औ समृद्धि कारी,
होती फिर भी बेचारी,
क्यों ना जग को ये प्यारी,
बेटी अभिमान है।
माता का दुलार बेटी,
पिता का है प्यार बेटी,
खुशी का संसार बेटी,
सबका सम्मान है।
सूना घर महकाती,
चिड़िया सी च-चहाती,
“कांत” मन बहलाती,
बेटी स्वभिमान है।
प्यारा उपहार कोई,
बेटी जैसा नही कोई,
रिश्ते सब निभाये वोही,
बेटी पहचान है

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” कुण्डलियाँ “


बेटी स्वाभिमान है, बेटी ही सम्मान।
बेटी ही अभिमान है, बेटी ही पहचान ।।
बेटी ही पहचान, शान रिश्तों की होती,
होता सब शमशान,अगर बेटी ना होती।
“शर्मा लक्ष्मीकान्त”, घाव हँस ये सह लेती,
ईश्वर की सौगात, प्रेम वर्षा है बेटी।।

द्वारा:-✍️✍️✍️
लक्ष्मीकान्त ‘रुद्रायुष’
(स्व-रचित / मौलिक)
देवली,विराटनगर,जयपुर,राज०303102

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