भगवान पर कविता –

शब्दों से परे है वह – निमाई प्रधान ‘क्षितिज’

भावों के सर्गों में स्पंदित
परमाणुओं का लय है !
शब्दों से परे है वह…
किंतु अर्थों का अवयव है !!

पंचभूतों के परम-मिलन से
पल्लवित होते नव कोंपल
पालन करती प्रकृति उन्हें
निज आँचल में प्रतिपल
पुष्पित होते फिर फल देते
तना तानकर गर्वित होते
फिर धीरे-धीरे उनके सारे
पीत-पर्ण झरते जाते हैं
पंचभूतों में मिलने का वे
रहस्य यही बतलाते हैं..
कि सृष्टि-चक्र की शाश्वतता में
यहीं सृजन है,यहीं विलय है !!

शब्दों से परे है वह…
किंतु अर्थों का अवयव है !!

रंग-रंग के रंगों से रंगी,
रंगरेज़ों की दुनिया में…
मन को हरते सतरंग हैं यहाँ
कुछ फीके और कुछ गहरे ,
पनघट-पनघट रूनझुन-रूनझुन
हैं लालिमा लिये क्षितिज पर ठहरे
वहीं कमलिनी-कमल जल में…
खिलने को हैं आतुर मानो
परंतु प्रतीक्षा में पनिहारन-से
ताकें अधडूबा-अधनिकला सूरज
जो क्षितिज-पट से झांकता कहता
मुझे भी प्रातः ओ’सांझ का संशय है !!

शब्दों से परे है वह…
किंतु अर्थों का अवयव है !!


निमाई प्रधान ‘क्षितिज’


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