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भीष्म की विवशता

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भीष्म की विवशता

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कौरव और पांडव के पितामह,
सत्य न्याय के पारखी !
चिरकुमार भीष्म ,क्या कर गये यह?
दुष्ट आततायी दूर्योधन के लिए ,
सिद्धांतों से कर ली सुलह!
योग्य लोकप्रिय सदाचारी से ,
छुड़ा कर अपना हाथ,
क्यों दिया नीच पापिष्ठ क्रूर दूर्योधन का साथ?,
सोचता हूँ कि क्या यह सब था अपरिहार्य ?
या पितामह के लिए सहज स्वीकार्य?
विदुर संजय कृष्ण सभी न्याय चाहते थे ,
पर पितामह के विरुद्ध कह नहीं सकते थे!
कई बार चला वार्ताओं का दौर,
पर विधि का विधान था कुछ और!
“पाँच गाँव तो क्या;पाँच अंगुल भूमि भी नहीं दूँगा!
यदि पांडव युद्ध में विजयी हुए तो हार मान लूँगा।”
दुष्ट दूर्योधन के दर्प से भरे ये वचन,
बदल न सके भीष्म पितामह के मन,
संधि के सभी प्रयास विफल रहे,
पितामह के प्राण भी विकल रहे,
युद्ध करना हुआ जब सुनिश्चित,
होकर पितामह अत्यंत व्यथित,
दूर्योधन से कहा कुछ इस प्रकार___
युद्ध में चाहे तेरी जीत हो या हार ,
तेरे पक्ष में ही मैं यह युद्ध करूँगा,
धृतराष्ट्र को दिये वचन से नहीं हटूंगा,
अब यह न्याय हो अथवा अन्याय,
नमक के कर्ज से मैं हूँ निरुपाय,
दूर्योधन की बात मान ली गई,
युद्ध में हत हुए शूरवीर कई,
अंत में युद्ध का अवसान हुआ,
कौरव का इतिहास लहूलुहान हुआ!
उभय पक्ष के अनेकों वीर मारे गए,
संतान अनाथ;सुहागिनों के मांग उजाड़े गए,
पितामह ने भी इच्छामृत्यु का वरण किया,
शरशैय्या पर नश्वर देह त्याग दिया!!



पद्ममुख पंडा
सेवा निवृत्त अधिकारी
छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक
निवास स्थान महापल्ली

No Comments
  1. Vikram Sen says

    सुंदर कविता लिखी है आदरणीयआपने।

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