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भ्रमर दोहे – बाबूराम सिंह

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भ्रमर दोहे

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आगे-आगे जा करे,जो सुधैर्य से काम।
बाढे़ चारो ओर से , ढे़रों नेकी नाम।।

प्यासेको पानी पिला,भूखेको दोभीख।
वेदों शास्त्रोंका यहीं,लाखों में है सीख।।

जाने माने लोग भी ,हो जाते हैं फेल।
पूर्ण यहाँ कोई नहीं,माया का है खेल।।

गाये धाये नेक पै ,पाये प्यारा नाम।
छाये भोले भाव पै,भाये साँचा काम।।

जाना है जागो मना,अंतः आँखे खोल।
प्यारे ही तो हैं सभी,मीठी वाणी बोल।।

माँ की सेवा है सदा,मानो चारों धाम।
खेले माँ की गोद में,भी आके श्रीराम।।

माता के जैसा नहीं, दूजा कोई प्यार।
खाया खेला प्यार में,पाया है संसार।।

जूठे बैरों के लिए ,माँ भावों को भाँप।
भोरे-भोरे राम जी,आये आपो आप।।

आधे साधे क्या हुआ,होवे पूरा काम।
जागोभागो दोष से,त्यागो भी आराम।।

ज्यादा बाधा भी पडे़,ना हो डा़वाडोल।
धारो यारों सत्य को,झूठे की ना मोल।।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)841508
मो०नं० – 9572105032
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