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अटल बिहारी वाजपेई जी पर कविता

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-:अटल बिहारी वाजपेई जी पर कविता

25 दिसंबर,1924 को, ग्वालियर की पवित्र भूमि पर,
एक दिव्य पुत्र ने जन्म लिया।
धन्य हुई भारत की धरती, भारतरत्न जो आए थे।

राजनीति के प्रखर प्रवक्ता, भारतरत्न से सम्मानित थे,
हिंदी कवि और पत्रकार के रूप में भी वो जाने जाते हैं।
चार दशक तक राजनीति में जो सक्रिय भूमिका निभाए थे,
दो बार प्रधानमंत्री बनने वाले, वो अटल बिहारी कहलाए थे।

पोखरण में परमाणु परीक्षण कर, भारत को शक्ति संपन्न बनाने वाले थे,
सौ साल पुरानी कावेरी जल विवाद को सुलझाने वाले थे,
वो अटल बिहारी थे जिसने आर्थिक विकास को ऊंचाई पर पहुंचाए,
थे अटल अपनी हर बात पर, राष्ट्रधर्म को अपनाए थे,
बड़ा लगाव था बिहार से उनका, कहते थे फक्र से वो,
आप केवल बिहारी हो, मैं तो अटल बिहारी हूं।

कुंवारे नहीं, अविवाहित थे, भीष्म पितामह कहलाते हैं,
राजकुमारी कौल से प्रेमकथा को, कविता में बतलाते हैं।
नमिता भट्टाचार्य को दत्तक पुत्री स्वीकार किए,
भारत मां की सेवा में ही जीवन वे व्यतीत किए।
भारत को लेकर उनकी दृष्टि, भूख, भय, निरक्षरता से मुक्त बनाना था,
लेकिन उनका यह सपना भी आज तक अधूरा है।

उनके काव्यसंग्रह में ऊर्जा का भरमार है,
बचपन से ही देशहित के प्रति उनका रुझान था।
उनकी कविता पराजय की प्रस्तावना नहीं, जंग का ऐलान है,
वे हारे हुए सिपाही का नैराश्य निनाद नहीं, जूझते योद्धाओं का विजय संकल्प हैं।
वे निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष हैं,
हारते सैनिकों के दृढ़ निश्चय के जोश हैं।

हे वीर पुरुष! आपकी गाथा का कैसे मैं गुणगान करूं?
गाथाएं आपकी, आत्मविश्वास मुझमें भर देती है।
हे कविवर और अमर पुरुष, रचनाएं आपकी मुझको भी आकर्षित करती है।
शत शत नमन है आपको, हमारा प्रणाम स्वीकार करें।
सत्यमार्ग सदा ही अपनाएंगे, भारत का मान बढ़ाएंगे।
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सृष्टि मिश्रा (सुपौल,बिहार)

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