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चाँद बिखरता चाँदनी

चाँद बिखरता चाँदनी,
करता जग अंजोर।
चंद्र कांति से नित लगे,
अभी हुआ है भोर।।

दुनिया भर से तम मिटा,
चारों दिशा प्रकाश।
नील गगन पर दिव्यता,
आलोकित आकाश।।

नवग्रह देव मयंक हैं,
धरो मनुज तुम ध्यान।
पूज्यनीय है परम प्रभु,
चंद्र देव को मान।।

शीतल पुंज प्रकाश से,
नाद करे भू ताल।
वही निशापति चाँद हैं,
शोभित शंकर भाल।।

सारे तारे देख लो,
शशिधर दिव्य प्रकाश।
किरणें उसके हैं लगे,
लाल रंग आकाश।।

~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”
रायपुर (छ.ग.)

धवल चन्द्र रात्रि में

सफेद चांद धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे ,
देखते ही बनता है नजारा
चांदी जैसा मेघ चमकता
लगता है बड़ा ही प्यारा ।
खो जाता हूं मनोहर दृश्य में ।


धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे ।
चंचल चितवन पंछी चकोरा
देख चांद का रूप वो गोरा
नजर कभी ढूंढने न देता
घूरे बैठ अथक डाल पे ।

धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे ।
चांदी जैसे चमक रहे
तोतिया तरूओं के पत्ते
चंपा जूही के पौधों पर
खिले श्वेत फूलों के गुच्छे
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे ।


ऐसा मनोहर चित्र प्यारा
शायद ना हो कोई दूसरा
देख कर करता अभिनन्दन
फिर आंखें बंद कर ऊतारूं मन में
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे ।
                 -0-                                
नवलपाल प्रभाकर “दिनकर”

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