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चहचहाती गौरैया

चहचहाती गौरैया
मुंडेर में बैठ
अपनी घोसला बनाती है,
चार दाना खाती है
चु चु की आवाज करती है,
घोसले में बैठे
नन्ही चिड़िया के लिए
चोंच में दबाकर
दाना लाती है,
रंगीन दुनिया में
अपनी परवाज लेकर
रंग बिखरेती है,
स्वछंद आकाश में
अपनी उड़ान भरती है,
न कोई सीमा
न कोई बंधन
सभी मुल्क के लाड़ली
उड़ान से बन जाती है,
पक्षी तो है
गौरैया की उड़ान
सब को भाँति है,
घर मे दाना खाती है
चहकते गौरैया
देशकाल भूल
सीमा पार चले जाती है,
अपनी कहानी
सबको बताती है
कही खो न जाऊ
अपना दर्द सुनाती है।
-अमित चन्द्रवंशी “सुपा”
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद


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