छतीसगढ़ दाई
छतीसगढ़ दाई
गमकत हे संगाती
चंदन समान माटी
नदिया पहाड़ घाटी
छतीसगढ़ दाई।
लहर- लहर खेती
हरियर हीरा मोती
जिहाँ बाजे रांपा-गैंती
गावै गीत भौजाई।
भोजली सुआ के गीत
पांयरी चूरी संगीत
सरस हे मनमीत
सबो ल हे सुहाई।
नांगमोरी,कंठा, ढार
करधन, कलदार
पैंरी,बहुँटा श्रृंगार
पहिरे बूढ़ीदाई ।
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हरेली हे, तीजा ,पोरा
ठेठरी खुरमी बरा
नांगपुरी रे लुगरा
पहिरें दाई-माई।
नांगर के होवै बेरा
खाये अंगाकर मुर्रा
खेते माँ डारि के डेरा
अर तत कहाई।
सुंदर सरल मन
छतीसगढ़ के जन
चरित्र जिहाँ के धन
जीवन सुखदाई।
पावन रीति रिवाज
अँचरा मां रहे लाज
सबो ले सुंदर राज
छत्तीसगढ़ भाई।
रचना:—सुश्री गीता उपाध्याय