चल रहा हूँ उस पथ पर – कविता

चल रहा हूँ उस पथ पर
कि मंजिल आसान हो जायेगी
बढ़ा दिए हैं कदम इस उम्मीद से
कि राह खुद ब खुद बन जायेगी

मै डरता नहीं हूँ इस बात से
कि रास्ते कठिनाइयों भरे होंगे
मुझे मालूम है , पालकर
सीने में जोश और लेकर
उस उम्मीद का साथ

जो
मुझे प्रेरित करेगी
छूने आसमान और
उस लक्ष्य की ओर मुखरित होगा

मेरे आदर्श और साथ ही
मुझे स्वयं को बांधना होगा
उन सीमाओं में जो
मुझे गलत राह की ओर
प्रस्थित न कर दे

बचना होगा मुझे
उन कुंठाओं से
जो बाधा न बन सके
व्यवधान न हो सके
मुझे बाँध न सके

मुझे उन्मुक्त बढ़ना होगा
चीरना होगा
सीमाओं को
आँधियों को
बंधनों को
तूफानों को
व्यवधानों को
अन्धकार को
कठिनाइयों को

छूना होना
मुझे
मंजिल को
अग्रसर रहना होगा

तब तक
जब तक
मै चूम न लूं
मंजिल के उस दर को

जो मुझे
सफल कर सके
जीवन दे सके

पूर्ण कर सके मेरा सपना
कुछ इस तरह
कि जीतकर मंजिल को
पा लिया
मैंने सब कुछ
मेरी मंजिल है

प्रकृति की अनुपम छटा
चारों ओर विचरती
अनुपम कृतियाँ
हर पल पलता बढ़ता बचपन
घरों में खिलती मुस्कराहटें

संस्कृति व संस्कारों से सजा संसार
चारों ओर की बहार
चंचल बचपन
बूढों के मन में पलता
बच्चों के लिए प्यार

पालने में खिलता जीवन
फूलों की वादियों में
भंवरों का चहचहाना
विद्यालयों में संवरता जीवन

ये सब मुझे भाते हैं
ये सब मेरी मंजिल के हिस्से हैं

आओ हम सब मिल
इस मंजिल की ओर
कदम बढ़ायें
स्वयं को जगायें
स्वयं को जगायें

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